उत्तराखंड: बाघ संरक्षण में सुधार, मौत के मामलों में करीब 62% की गिरावट
उत्तराखंड राज्य में बाघों की मौत के मामलों में इस वर्ष बड़ी कमी दर्ज की गई है। पिछले वर्ष की तुलना में मौतों में 61.90 प्रतिशत की गिरावट आई है और इस वर्ष शिकार का कोई मामला सामने नहीं आया है।
राज्य में बाघों की संख्या संतोषजनक बनी हुई है। पिछले वर्ष बाघों की मौत के कई मामले सामने आए थे, जिनमें पहली घटना 23 जनवरी को दर्ज हुई थी और साल के अंत तक, 27 दिसंबर तक यह संख्या 21 तक पहुंच गई थी। इन मौतों में प्राकृतिक कारणों के अलावा कुछ शिकार के मामले भी शामिल थे। उदाहरण के लिए, कुमाऊं क्षेत्र में जुलाई और सितंबर में तीन बाघों की खाल बरामद की गई थी। जुलाई में मिली खाल की लंबाई 11 फीट बताई गई थी।
वर्तमान वर्ष बाघ संरक्षण के लिहाज से बेहतर साबित हो रहा है। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) के आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष अब तक केवल आठ बाघों की मौत हुई है।
राज्य में 2012 से सितंबर 2024 तक कुल 132 बाघों की मौत दर्ज की गई है। इस संदर्भ में, बाघों की मौत के मामले में उत्तराखंड देश में चौथे स्थान पर है।
बाघों की अप्राकृतिक मौतों को रोकने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए गए हैं। जंगलों में पेट्रोलिंग और मॉनिटरिंग को बेहतर बनाया गया है, जिससे अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगा है। साथ ही, बाघों के वास स्थल में सुधार के प्रयास किए गए हैं। जंगलों में भोजन और सुरक्षा की उपलब्धता बढ़ने से बाघों का जंगल से बाहर निकलना कम हो रहा है। इको-टूरिज्म से जुड़े लोग भी वन विभाग को संरक्षण प्रयासों में सहायता कर रहे हैं।
इसके अतिरिक्त, पिछले वर्ष दर्ज शिकार के मामलों की गहन जांच की जा रही है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को पूरी तरह से रोका जा सके।