उत्तराखंड: पांच सालों में कम हो गईं क्षेत्र पंचायतों की पांच सीटें, पलायन का दर्द अब भी बरकरार
उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में पलायन की समस्या अब भी गंभीर बनी हुई है, जिसका खुलासा हाल ही में पंचायतों के आबादी के आधार पर किए गए परिसीमन से हुआ है। राज्य में पिछले पांच सालों में क्षेत्र पंचायतों की पांच सीटें कम हो गई हैं, जो राज्य के पहाड़ी जिलों में जनसंख्या के घटने का संकेत देती हैं। राज्य गठन के 24 साल बाद भी पलायन की पीड़ा कम नहीं हो पाई है।
पर्वतीय जिलों में घटीं क्षेत्र पंचायतों की सीटें
परिसीमन के आंकड़ों के अनुसार, पांच साल पहले 2020-21 में राज्य के 12 जिलों में क्षेत्र पंचायतों की 2,941 सीटें थीं, जो अब घटकर 2,936 रह गई हैं। पिथौरागढ़ में तीन, चमोली और रुद्रप्रयाग में भी सीटों की कमी दर्ज की गई है। इसका सीधा कारण पलायन है, जिससे इन जिलों में जनसंख्या घटी है। वहीं, जिला पंचायतों की संख्या में मामूली वृद्धि दर्ज की गई है, जिसमें मात्र दो सीटें बढ़ी हैं, जिससे जिला पंचायतों की कुल संख्या 343 हो गई है।
जिला पंचायतों की सीमित वृद्धि
जिला पंचायतों की संख्या में पिछले पांच वर्षों में केवल दो नई सीटों की वृद्धि हुई है। वर्ष 2020-21 में हरिद्वार को छोड़कर अन्य 12 जिलों में जिला पंचायतों की 341 सीटें थीं, जो अब बढ़कर 343 हो गई हैं। इस वृद्धि के बावजूद, यह साफ है कि पहाड़ी क्षेत्रों में पलायन का असर अधिक है और जनसंख्या के घटने से पंचायतों की सीटों पर प्रभाव पड़ रहा है।
आंकड़ों की समीक्षा
नए परिसीमन के बाद, अल्मोड़ा में जिला पंचायत की सीटों की संख्या 45, नैनीताल में 27, बागेश्वर में 19, पिथौरागढ़ में 32, ऊधमसिंह नगर में 35, पौड़ी गढ़वाल में 38, टिहरी गढ़वाल में 45, चमोली में 26, रुद्रप्रयाग में 18, उत्तरकाशी में 28, और देहरादून में 30 सीटें हो गई हैं। वहीं, चंपावत में शहरी विकास विभाग के कारण परिसीमन का कार्य नहीं हो सका, लेकिन जिले में फिलहाल 15 जिला पंचायत सीटें बनी रहेंगी।
आगे की राह
परिसीमन के इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि पलायन रोकने के लिए प्रदेश में ठोस उपाय किए जाने की आवश्यकता है। गांवों में रोजगार के साधन बढ़ाने, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार को दीर्घकालिक योजनाओं पर काम करना होगा, ताकि भविष्य में पर्वतीय जिलों में जनसंख्या में गिरावट को रोका जा सके और विकास की गति बनी रहे।
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