एम्स की स्मार्ट लैब में एआई तकनीक से चिकित्सा क्रांति: कम जांच में सटीक निदान और संसाधनों की बचत
विशेषज्ञों के अनुसार, एम्स की स्मार्ट लैब में हर दिन हजारों मरीजों की जांच के लिए एक लाख से अधिक टेस्ट किए जा रहे हैं, जिसमें एक ही मरीज के लिए कई बार जांचें करनी पड़ती हैं।
इस प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए एम्स डेटा के आधार पर एक एआई तकनीक विकसित कर रहा है, जिससे रोग की पहचान के लिए आवश्यक जांच की संख्या सीमित की जा सकेगी। भविष्य में रोग की पहचान के लिए 50 जांचों की बजाय केवल पांच जांचों से ही रोग का पता चल सकेगा, जिससे न केवल मरीजों का समय बचेगा, बल्कि प्रयोगशाला में काम करने वाले डॉक्टरों का भी समय बचेगा।
इस तकनीक के चलते मरीजों के इलाज में तेजी आएगी। एम्स की लैब में रोजाना हजारों खून के सैंपल की जांच के दौरान ऑटोमेशन की प्रक्रिया में लाखों टेस्ट का डेटा इकट्ठा होता है, जिससे एक एआई आधारित एल्गोरिदम विकसित किया जा रहा है।एम्स के प्रयोगशाला चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. श्याम प्रकाश ने बताया कि एआई तकनीक के विकास के बाद कम जांचों में अधिक सटीक परिणाम प्राप्त किए जा सकेंगे। इससे जांच का समय बचेगा और रोग की पहचान जल्दी हो सकेगी।
इस प्रकार, बचे हुए समय में अधिक मरीजों की जांच हो सकेगी, जिससे अन्य मरीजों को भी लाभ होगा। एम्स में वर्तमान में हर दिन 1,10,000 जांच की जाती है। एआई तकनीक के लागू होने से इसमें सुधार आएगा। एम्स के निदेशक डॉ. एम श्रीनिवास ने कहा कि एआई तकनीक के माध्यम से चिकित्सा सुविधा में सुधार होगा और बदलाव आएगा।एम्स में खून की जांच की तकनीक में सुधार कर हर माह लाखों लीटर आरओ पानी की बचत भी की जा सकेगी। डॉ. प्रकाश के अनुसार, खून की जांच के लिए वर्तमान में ड्राई और वेट तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। ड्राई तकनीक में केवल 2 से 11 माइक्रोलीटर खून के सैंपल से जांच की जा सकती है और रिपोर्ट दो से तीन घंटे में प्राप्त हो जाती है।
एम्स के वार्ड और आपातकालीन विभाग में आने वाले मरीजों के लिए रोजाना लगभग 25,000 जांच की जाती है। वहीं, वेट तकनीक से जांच के लिए हर दिन लगभग 15,000 से 20,000 लीटर आरओ पानी की आवश्यकता होती है।भारतीय जैव चिकित्सा विज्ञान अकादमी द्वारा आयोजित समारोह में बेहतर कार्य करने वाले डॉ. एलएम श्रीवास्तव को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। साथ ही, आईआईटी के प्रोफेसर हसनैन, एम्स की प्रोफेसर डॉ. रीमा दादा, और प्रोफेसर पीके श्रीवास्तव को भारतीय जैव चिकित्सा विज्ञान अकादमी का फैलो अवार्ड दिया गया।
यह भी पढ़ें:– बदरीनाथ हाईवे पर बोल्डर गिरने से हादसा टला, यात्री सुरक्षित
इस दौरान युवा वैज्ञानिकों ने मौखिक प्रस्तुतियाँ दीं और 40 से अधिक छात्रों ने पोस्टर प्रस्तुत किए। सम्मेलन में 32 से अधिक विशेषज्ञों ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार साझा किए, जिनमें दवा की स्क्रीनिंग, मेटाबॉलिक बीमारियाँ, और अन्य विषय शामिल थे।