तराई में प्रवासी पक्षियों का स्वागत: यूरोप, ईरान और साइबेरिया से आए परिंदे बना रहे आकर्षण का केंद्र
तराई में प्रवासी पक्षियों का आगमन हो चुका है, जिससे पर्यावरण प्रेमियों, पक्षी-विचरकों और वन विभाग के कर्मचारियों में उत्साह देखने को मिल रहा है। पक्षियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वन विभाग ने खास तैयारियां की हैं।
तराई के दलदली और स्वच्छ जल वाले क्षेत्रों में प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा लगने लगा है। हर साल शीतकाल में ये पक्षी यूरोप, ईरान, अफगानिस्तान, रूस और साइबेरिया जैसे ठंडे इलाकों से लंबी यात्रा कर उत्तराखंड के गूलरभोज, शारदा, बैगुल, नानकमत्ता, धुरा, और रामनगर जैसे स्थानों पर पहुंचते हैं। नवंबर से शुरू हुआ यह आगमन अब अपने चरम पर है।
विशेषज्ञों के अनुसार, ये पक्षी चार महीने तक स्वच्छ जल और दलदली भूमि वाले क्षेत्रों में रहते हैं। यहां वे घोंसले बनाकर अंडे देते हैं और बच्चों का पालन-पोषण करते हैं। इसके बाद गर्मियों की शुरुआत में अपने मूल स्थानों की ओर लौट जाते हैं।
पक्षियों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान
वन विभाग ने इन प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के लिए गश्त बढ़ा दी है। सरोवरों में नाव से गश्त कर यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि शिकार या किसी अन्य कारण से पक्षियों को नुकसान न हो। हाल ही में शारदा रेंज में एक व्यक्ति पर पक्षियों के शिकार का मामला भी दर्ज किया गया है।
पक्षियों की सूची
तराई में आए प्रमुख प्रवासी पक्षियों में मालार्ड, नार्दर्न पिंटेल, यूरेशियन टील, रेड क्रेस्टेड पोचार्ड, कॉमन पोचार्ड, फेरूजिनस डक, टफ्टेड डक, लिटिल ग्रेब, ग्रेट क्रेस्टेड ग्रेब, कॉमन मोरहें, और यूरेशियन कूट शामिल हैं।
स्थानीय पक्षियों में एशियन वूली नेक्ड स्टॉर्क, एशियन ओपन बिल स्टॉर्क, और बार हेडेड गूज प्रमुख हैं।
सफाई और संरक्षण की आवश्यकता
प्रवासी पक्षियों की ब्रिडिंग और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए डैम और नदी क्षेत्रों को साफ रखना आवश्यक है। जहरीले पदार्थों का निस्तारण इन इलाकों में प्रतिबंधित होना चाहिए, ताकि पक्षियों को अनुकूल वातावरण मिल सके।
वन विभाग का यह प्रयास न केवल पक्षियों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है।