रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल लगातार जारी है, जिसमें डॉक्टरों की सुरक्षा की मांग मुख्य मुद्दा है। उनका कहना है कि केंद्रीय सुरक्षा अधिनियम (सीएपी) लागू होने तक यह हड़ताल समाप्त नहीं होगी।

सुप्रीम कोर्ट से सुरक्षा का आश्वासन मिलने के बावजूद, डॉक्टरों का हड़ताल पर अड़े रहना उनकी चिंता की गंभीरता को दर्शाता है।दिल्ली के बड़े अस्पतालों जैसे एम्स, सफदरजंग, और राम मनोहर लोहिया में ओपीडी सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं, जिससे कई मरीजों को सही समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है। हालांकि, आपातकालीन सेवाओं पर इसका असर नहीं पड़ा है।सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को हुई सुनवाई के बाद, फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फाइमा) के तहत रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने बैठक की। इस बैठक में तय किया गया कि जब तक डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक प्रदर्शन जारी रहेगा। इसके साथ ही, डॉक्टर सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका दायर करने के लिए भी तैयार हैं।

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) ने भी डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर एक याचिका दायर करने का फैसला किया है। डीएमए ने अपने याचिका में दो अतिरिक्त बिंदु जोड़े हैं: एक, संस्थागत एफआईआर का प्रावधान और दूसरा, पीड़ित डॉक्टरों के लिए मुआवजा तंत्र का विकास।कोलकाता में डॉक्टर की हत्या के मामले को देखते हुए दिल्ली सरकार ने अस्पतालों में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए एक समिति बनाने का प्रस्ताव दिया है। इस समिति में चिकित्सा निदेशक, वरिष्ठ डॉक्टर, रेजिडेंट डॉक्टर, और नर्सों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। साथ ही, सुरक्षा योजना के तहत ‘कोड वायलेट’ का भी उपयोग किया जाएगा, जिससे अस्पताल के कर्मचारियों और डॉक्टरों को बेहतर सुरक्षा मिल सके।

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दिल्ली सरकार ने यह भी निर्देश दिया है कि अस्पतालों की सुरक्षा योजना को पुलिस विभाग के साथ साझा किया जाए और इसे हर जिले के पुलिस उपायुक्त और पुलिस स्टेशन के प्रमुख को बताया जाए। इसका उद्देश्य अस्पतालों में सुरक्षा सुनिश्चित करना है, खासकर आपातकालीन सेवाओं के दौरान।

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