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जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: समय से पहले लौटने लगे प्रवासी पक्षी, फरवरी में ही बढ़ी गर्मी

उत्तराखंड में प्रवासी पक्षियों के आगमन और प्रवास अवधि पर जलवायु परिवर्तन का असर साफ नजर आने लगा है। फरवरी में ही तापमान बढ़ने के कारण राज्य के विभिन्न जलाशयों में बसेरा बनाने वाले ये विदेशी पक्षी अब एक महीने पहले ही लौटने लगे हैं। कुमाऊं के तुमड़िया डैम, बैगुल डैम, हरिपुरा और बौर जलाशय, आसन आर्द्रभूमि, झिलमिल झील और नानक सागर डैम में प्रवासी पक्षियों की संख्या घटने लगी है।

हर साल साइबेरिया, रूस, मंगोलिया और कजाखस्तान जैसे ठंडे इलाकों से पक्षी सर्दियों के दौरान उत्तराखंड आते हैं। आमतौर पर ये पक्षी मार्च-अप्रैल तक यहां रुकते थे, लेकिन इस साल फरवरी में ही गर्मी बढ़ जाने के कारण ये जल्दी लौटने लगे हैं। तापमान में 6-7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई है, जिससे जलवायु अनुकूल न रहने के कारण पक्षियों की वापसी शुरू हो गई है। उदाहरण के लिए, नैनीताल जिले में इस साल फरवरी की शुरुआत में अधिकतम तापमान 21 डिग्री और न्यूनतम 8 डिग्री दर्ज किया गया, जबकि पिछले साल यह क्रमशः 14 और 6 डिग्री था।

प्रवासी पक्षी विभिन्न उड़ान मार्गों का उपयोग करते हैं, जिनमें से प्रमुख *सेंट्रल एशियन फ्लाईवे* है, जो भारत के ऊपर से होकर गुजरता है। उत्तराखंड की झीलें और आर्द्रभूमियां इन पक्षियों के लिए अनुकूल ठिकाने मानी जाती हैं, जहां वे आमतौर पर नवंबर से मार्च तक रहते हैं। हालांकि, इस साल उनका प्रवास काल एक महीने कम हो गया है।

**उत्तराखंड में दिखने वाले प्रमुख प्रवासी पक्षी:**
इस साल भी उत्तराखंड में कई महत्वपूर्ण प्रवासी पक्षी देखे गए, जिनमें शामिल हैं:
– **बार-हेडेड गीज़** – यह पक्षी छह से सात हजार मीटर तक उड़ान भर सकता है और हिमालय पार करने की क्षमता रखता है।
– *रेड-क्रेस्टेड पोचार्ड – मंगोलिया और काला सागर क्षेत्र से आने वाला एक सुंदर पक्षी।
– अन्य प्रजातियां– नॉर्दर्न पिनटेल, कॉमन टील, रूडी शेलडक, ग्रे लैग गूज, स्पॉट-बिल्ड डक, ब्लैक-टेल्ड गॉडविट, ब्राउन-हेडेड गल, ब्लैक-हेडेड गल, यूरेशियन कूट, ग्रे हेरॉन, मल्लार्ड, गैडवॉल, नॉर्दर्न शोवलर आदि।

प्राकृतिक संतुलन और संरक्षण की जरूरत
उत्तराखंड फॉरेस्ट ट्रेनिंग अकादमी के उपनिदेशक मयंक मेहता के अनुसार, प्रवासी पक्षियों का यह वार्षिक प्रवास जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ पर्यावरणीय संतुलन और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का संकेतक भी है। भारत में आने वाले सभी प्रवासी पक्षी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत संरक्षित हैं और इन्हें कानूनी सुरक्षा प्राप्त है।

पिछले कुछ वर्षों से फरवरी में ही गर्मी बढ़ने के कारण पक्षियों की वापसी पहले हो रही है। इस साल जलाशयों में मेहमान परिंदों की आवक मात्र तीन महीने ही रही, जबकि पहले वे कम से कम चार महीने तक रुकते थे। अगर जलवायु परिवर्तन का यही असर जारी रहा, तो आने वाले समय में प्रवासी पक्षियों की संख्या और प्रवास अवधि पर और अधिक प्रभाव पड़ सकता है।

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