शीतलाखेत मॉडल को लेकर यूकॉस्ट के महानिदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से चर्चा की और इसे पूरे प्रदेश में लागू करने की आवश्यकता बताई।
जनवरी के अंतिम छह दिनों में ही उत्तराखंड के कई स्थानों—गढ़वाल के पौड़ी, वरुणावत के जंगल, पीपलकोटी और उत्तरकाशी की वाड़ाहाट रेंज—में जंगल की आग की घटनाएं दर्ज हुईं। यह संकेत देता है कि आगामी फायर सीजन में स्थिति और गंभीर हो सकती है।
पिछले वर्ष गढ़वाल और कुमाऊं में वनाग्नि के कारण हुई भारी तबाही को ध्यान में रखते हुए इस बार शीतलाखेत मॉडल को अपनाने पर चर्चा हो रही है। हालांकि, पहले भी मुख्यमंत्री ने इस मॉडल की सराहना की थी और इसे अपनाने के निर्देश दिए थे, लेकिन सरकारी प्रक्रिया की अपनी गति रही।
### **शीतलाखेत मॉडल की शुरुआत**
शीतलाखेत मॉडल के संयोजक गजेंद्र रावत ने बताया कि 2003 की गर्मियों में अल्मोड़ा की कोसी नदी का जल प्रवाह सामान्य से काफी कम हो गया था, जिससे स्थानीय जल स्रोत सूखने लगे। इस समस्या को देखते हुए उन्होंने ‘पानी बचाओ, जंगल बचाओ, जीवन बचाओ’ अभियान शुरू किया।
पहले ठंड का मौसम लंबा चलता था, जिससे मिट्टी और पेड़-घास में नमी बनी रहती थी। अप्रैल-मई में खेतों की मेड़ों और जंगल की झाड़ियों को जलाने की प्रक्रिया (ओण, आड़ा, केड़ा जलाना) होती थी। लेकिन हाल के वर्षों में तापमान बढ़ने से आग की घटनाएं बढ़ गई हैं, क्योंकि इस दौरान चीड़ के पत्ते (पिरूल) गिरते हैं, जो आसानी से आग पकड़ लेते हैं। ऐसे में इस परंपरा को व्यवस्थित करने की योजना बनाई गई।
कैसे काम करता है शीतलाखेत मॉडल?
गजेंद्र रावत ने जंगल के दोस्त, प्लस अप्रोच फाउंडेशन और ग्रामोद्योग विकास संस्थान जैसे संगठनों के सहयोग से शीतलाखेत और आसपास के 40 गांवों को जागरूक किया। ग्रामीणों को सिखाया गया कि खेतों की मेड़ों और बंजर भूमि में उगी झाड़ियों को ठंड के मौसम में ही काटकर 31 मार्च से पहले जला दें। इसके बाद 1 अप्रैल को ‘ओण दिवस’ मनाने की परंपरा शुरू की गई।
2022 में शुरू हुई इस पहल को 2023 में अल्मोड़ा की तत्कालीन डीएम वंदना सिंह ने पूरे जिले में लागू किया और हर साल 1 अप्रैल को ‘ओण दिवस’ मनाने की घोषणा की। इस पहल में डीएफओ और अन्य प्रशासनिक इकाइयों का भी सहयोग मिला। स्याही देवी विकास मंच ने महिला समूहों, ग्राम प्रधानों और ग्राम प्रहरियों को जोड़ा, साथ ही ड्रोन तकनीक से निगरानी की योजना बनाई गई।
राज्य में विस्तार की मांग
यूकॉस्ट के महानिदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर इस मॉडल को पूरे प्रदेश में लागू करने की आवश्यकता बताई। पर्यावरणविद अनिल जोशी ने भी इस मॉडल को वनाग्नि रोकने में कारगर बताया।
शीतलाखेत मॉडल से जुड़े लोगों का मानना है कि वन विभाग आमतौर पर आग लगने के बाद कार्रवाई करता है, जबकि यह मॉडल आग लगने से पहले उसे रोकने पर केंद्रित है।
इस बीच, पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले राज्य के आठ व्यक्तियों को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने गणतंत्र दिवस समारोह में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था। इनमें जंगल के दोस्त समिति के सलाहकार गजेंद्र पाठक भी शामिल थे।